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रचना - गम्योड़ा सबद

म्हूं

(1)
माटी मुलकै आभो हुलसै
जणा जाणूं
हां जणा जाणूं
नूंवों बरस
नूंई सदी आई
नीं तो सागी दिन
जठै मिनख री मिनख स्यूं
म्हूं री लड़ाई।

(2)
म्हूं स्यूं जद म्हूं रलै
तो आपां बणा।
पण म्हूं नै जद म्हूं खलै
तो आपां तणा।

(3)
म्हूं री आकड़
डावड़ां घणी कोझी
ऋाह होंवता थकांई म्हूं
नित संभालै भरी जाण
खाली होंवती मिनखा गोजी।

(4)
म्हूं छोड आपां पकड़ां
पछै भलांईं
आखो आभो बांथां जकड़ां।

(5)
म्हूं स्यूं लपटाईजै जद
मिनखाई
मिनखापणै गमै
हेत रै आंगणै
म्हूं अर थूं सरप न्योलियै दांईं रमै।

(6)
घरां रा सुख चैन
गमै
जद घणी लुगाई री म्हूं
आंगणै रमै।

(7)
मन रा तार जोड़्यां
दोनूं हिवडां चानणौ
मन रा तार तोड़्यां
हिवड़ां रो अन्धारौ अणखावणौ।

(8)
म्हूं री चासणी स्यूं
लपेटिज्योड़ा मिनख
मीठा कठै स्यूं होवै
उणां रौ मिनखापणो तो
चासणी हेठै दब्योड़ौ टलल टलल रोवै।

(9)
म्हूं !
हां म्हूं ई समाज हूं।
समाज जिकौ देस बणावै
अर सगला देस रल्यां पछै
बणै है ओ विश्व।
तो म्हूं विश्व हूं
पण देस, समाज अर
म्हूं रै टुकड़ा मांय बंट्योड़ो।

(10)
दो पगां मिण न्हाखी है
धरती स्यूं आभै री दूरी
सूरज रो गरमास
अर चांद रो उजास
पण नीं मेट सक्यो
हाल तांईं
भरमाइज्योड़ै री तास।

बिसवास
बिसवास डोल्यौ !
थान्नां री ओट लेवंता ईं
बिसवास बोल्यौ।
थान्नां पर टिक्योड़ा बिसवास
का बिसवास रै सारै
चालता देवरा !
बात
इत्ती सी है...।

तिनखा
आवण स्यूं पैङली
जांवती दीसै है
लाई तिनखा।
गिणती रा नोट
अणगिणत खरचा।
करै कांई
लाई तिनखा।
मइनै खट्यो उडीक मांय
मिली अर गमी
लाई तिनखा।
बिजली अर कानांबाती
पाणी अर गैस।
बचै तो बैच कींयां ?
लाई तिनखा।
हाथ फुरै
पण कींयां ?
बा तो पैङली फुर्र हो जावै
चिड़कली दांई
लाई तिणखा।

खाटी-मीठीबातां
बै गमग्या
आवो सोधां
बै लाधग्या
आवो नूंवौ खाड्‌डौ खोदां।
भाई !
जे होवै क्यारै जोगो
तो पहाड़
नीं तो राई।
ब्याव सगाई !
गिरस्त गाडौ
घींसणै स्यूं पैली री मलाई।
ब्याव सगाई
गिरस्त गाडै मांय मेल्यौड़ी
अबखायां री हाण्डी रै नीचली अराई।
जूती घसीजै
झट ठाह लागै !
जूती स्यूं हरमेस घसीजती जमीन
कह ठाह लागै ?
हजम कोनीं होवै
बांरी बातां।
कांईं सम्भालां
आपरौ हाजमौ
का बांरी लातां ?
भूत ई कदैङई डरावै
बौ तो खाली भरमावै।
मिनख रा सांगा देख
भूत तो आपा डर ज्यावै।
रिपियौ अबार कोनीं खाली रिपियौ
आ तो मिनख री पिछाण बणगी है।
ईं पिछाण नै बचावण री जुगत मांय
आज भांयां बिच्चै बंदूकां तणगी है।
भाठा पूजीजै
जींवती ल्हासां ऊपर
राम भगत हां म्हे
राम निकल्योड़ौ है
पण।
पचास बरस।
अजैई ऊभी ज्यूं री त्यूं
भूख अर भीख
सुतन्तर है देस।
भण्डार भर्या
भूख स्यूं छः मर्या
रामजी कीं कर्या।
सिर मांय पड़तां ई ठाह पड़ी
घणी बोरी गिरस्त गाडी
रो भलांई कूक
घींसणी अबै थान्नै ई पड़सी लाडी।
बाबो जी आवै
अलख निरंजन गावै
कठैङई मूण्डै छूटी गालां
कठैङई घी री नालां पावै।
आज री घड़ी राजनीति
बिना निती रो राज
बजाऔ जद तांईं बाजै
औड़ो साज।
पांगरां कींयां ?
म्हारै सागै है हरमेस
खरपतवार विसेस।
चेत जीवड़ा चेत
जूणां तो
मुट्ठी झरती बेकलू रेत।
तुस रो कांईं भार ?
सैङवौ जणां ठाह पड़ै
कैङवै है सरकी री छात।
सलीमां चालां !
कांईं लेस्यां ?
अन्धारै रो सुख।
जावणौ हो कठैङई टैमसर
बै आय ऊभा
के हाल है !
कांई कैङवां उणां नै ?
धिंगाणै चिप्पै
जावण रो नांव नीं लेवै
कांई कैङवां उणां नै ?
कित्ता ?
देवो जित्ता
कांईं देवां
कठै म्हां खनै ?
हैलो ऽ ऽ ऽ...!
कुण ?
ओ तो म्हूं हू
जे थे म्हूं पछै
म्हूं कांईं ?
बै तो दिखाग्या
आप रो रंग
थान्नै झलाग्या
लाठी भाठौ अर जंग।
सूरज सागै तपूं
ऋरूं चांद साथै
म्हूं थली री रेत
सागदड़ी स्यूं हेत।
टाबर लाई
माटी रो लोधौ
चावै घड़द्यो मिनख
का गोधो।
काढ लिया हा दाणा
पठै बाल दियो हो सगलौ खेत
डांगरां रौ नीर बलग्यौ
तपगी ही धती री रेत।
आं लखणा तो कल ई पड़सी
चेत मानख चेत।
राजनीति मतैङई सिखा देवै
जोंक दांईं चूसणौ
चाकी ज्यूं पीसणौ।
किणनै चूसणौ
किणनै पीसणौ
आ तो जुगां स्यूं तै करयोड़ी
लेख लिख्योड़ी काङणी।
कलजुग मांय जनता पिंचीजैली
राजनीति री घाणी।

डोलती आस
कींयां बणूं थारौ
कींकर करूं भरोसौ
जद थे रमौ हो म्हारै सागै
जुगां स्यूं लुकमिचणी
सदांईं सोध लेवौ म्हनै
भलांई म्हूं कित्तोई लुकूं
क्यूं कै थै बेइमानी स्यूं खोल्यां राखौ हो
थारी तीसरी आंख
पछै क्यूं म्हांस्यूं लुकण रा कूड़ा सांग भराओ
अर आप रम्मत रा मजा
म्हानै पींच-पींच उठाऔ।
जे कदैई भूल स्यूं
आ ज्यावै है म्हारी बारी सोधण री
थे करौ हो हरमेस धोकौ
मिंदर देवरां अर मस्जिदां रै ठिकाणै
कदेई नीं लाध्या थै
चमगूंगा बण्या सोधता रैङया म्हे।
जद चित अर पट दोनूं थारी
पछै क्यूं करौ दुर्गति म्हारी
बाढ क्यूं नीं न्हाखो एक झटकै स्यूं
क्यूं परचावौ
क्यूं भरमावौ
जद करणी है थे थारली।
म्हारै ऊपर मैर करौ
म्हूं थारो बणङर
भरोसौ करङर
घणी चोट खायली।
अबै नीं...
कदैङईनी...

न्यावरा तर्क
ध्याड़ियौ मजूर लाई
कुण करतौ हौसी
बीं जित्ती मैनत
बीं जित्ता तरला।
पण तोई बीं री पार नी पड़ै
आथण दिनुगै
सेर आटै रा टोटा पड़ै।
पछै न्याव कठै ?
कठै है बै भगवान
जिका पालणहार बजै
आखी दुनिया बान्नै भजै ?
उथलौ ना देवौ
तर्क ना बताऔ म्हानै।
करमां रै फेर री बात कैंवता मिनख
फगत सांग भर सकै
बै के जाणै
कै पेट री आग मांय
झुलसता मजूर
करमां री बात
किंयां करसकै।

टूटती आस
बौपारी
स्यूं घाट तो कोनी थै
सोनै सी पाक्योड़ी
खून पसीनै स्यूं सिंच्योड़ी
म्हारी फसल बढ़तांईं
पण खलै पूगण स्यूं ठीक पैङली
थे आय ऊभा रैङवौ
चमकती बीजल्यां अर गरजतै
बादलां री फौजां साथै।
म्हूं घणी हाथा जोड़ी करूं
परसादी अर जागण तकात बोलूं
पण थे कद सुणौ।
उल्टा मुलकौ
सांचाई गांव रै बाणियै दांईं।
घड़ी स्यात मांय
कर न्हाखो धूड़ौ
बरस-बरसङर
म्हारी मईना री मैनत
आंख्यां रा सुपनां
हिवड़ै री आस।
पछै किणविद कैङवूं थान्नै अन्नदाता
घणी खामा कींयां करूं ?

पसरतो अन्धारो
मेट
भाईड़ा मेट
हिवड़ां रो अन्धारौ मेट
बातां री उदासी मेट
रिश्तां री गरमास
भलै सिलगा
अर ठर्योड़ी मिनखपणौ तपा।
अणखावणौ अन्धारौ तो
हेठै दाब्यां बैठ्यो है
होठां री मुलक
सोनल सुपनां रा चितराम
अर पसरेड़ा है खाऊं-बाढूं रा राकस
गांव-गली, घ-घर ।
अपणायत री छींयां कींयां तणै
जद हरख री बदाली
भेली-भेली सी होंवती
होलैसीङक निसर जावै
बिना गरजै बिना बरसै।
पसरेड़ी उदासी
हेत रो खेत
गिट नीं जावै
जूणां रै बिलोणै हरख रो चूंटियौ
पिंघल री जावै।
आगै बढ।
अर रोक लै
खींप दांईं बढती राड़ नै
अपणायत री बाड़ स्यूं।
नीं तो पिछतावैलौ
जद गैरौ अन्धारो
च्यारूंमेर पसर जावैलो।
अन्धारै मांय नीं सूझै
हाथ न हाथ
बाढ देवै है अन्धारै मांय
हाथ न हाथ
आप स्यूं आप
कटण-बढण स्यूं पैङली
चास ले अपणायत रा बुझता दिवला
अर सोध ले थारौ गम्योड़ौ मिनखपणौ।

मदारी
दोङफारे रै सुपनै मांय
आवै है एक गम्योड़ौ मदारी
बांदरै नै मोढै चाढ्यां
जमूरै री आंगली पकड़्यां
डुगडुगी बजांवतौ
गल मांय भांत भंतीली
कार्यां आलौ झोलौ हिलांवतौ।
झोलै स्यूं झांकता
कचकड़ै री डबडयां
अर काच री गोल्यां मांय बन्द
छोटा-छोटा जादू।
पीतल री एक फूट्योड़ी परात
साथै फाट्योडै कामल मांय
ऋर्योड़ी रात।
गली मांय बड़तांई
बो काढै है झोलै स्यूं
जर खायोड़ी लोह री बांसरी
अर छेडै है एक फिल्मी राग।
चिलकती पांसल्यां आलौ जमूरौ
अर चिप्योड़ै पेट आलौ बान्दरौ
दोनूं हुवै है त्यार
मजमो लगावण नै।
डुगडुगी अर बांसरी री तान
मजमै रो राखण तांईं मान
भेला हुवै है गली रा सगला
बण टाबर
टाबरां रै भेलै।
ल्यो खेल सरू
मदारी गोल घेरौ बणावण सारू
खींचै है एक लकीर
डुग-डुग-डुग-डुग-डुग-डुग
रबड़ रै गुड़डै दांई डछलतौ कूदतौ जमूरौ
बिना सिर टेक्यां गत्तागोली खांवतौ
पड़ती कछड़ी नै सामतौ जमूरौ
बांदरै रो रूसणौ, मदारी रो मनावणौ
सगाई री सरत, बांदरै रो बरत
टाबरां री ताल्यां मदारी री गाल्यां।
गोल्यां गिटतौ मदारी
बीं बीं हाऊ फंग
गोला काढतौ मदारी
बीं बीं हाऊ फंग
कोयलै स्यूं बणायोड़ी मूंछ्यां
मूंछ्यां लारै पापी पेट रो
सुवाल उठांवतौ जमूरौ
बणै है भूख रौ गोलौ
जिकौ अटकै है मदारी रै कण्ठा मांय
कण्ठ मोसिजै
जमूरो पींचिजै
टाबर बजावै एकङक फेरूं ताली।
पेट दिखांवतौ बांदरौ
जद साम्है है पीतल री फूट्योड़ी परात
मजमौ खिण्डै है
साथै खिण्डै है परात मांय
पंजी दस्सी का एक आध चार आनै रा सिक्का।
सुपनौ टूटै चाणचक
जद घ्एक था मदारीङ रो पाठ बांतौ
छोरौ
धिंगाणै उठाङर पूछै है
पापा, मदारी किस्योक हुवै
कद आवै ?
कांईं कैवूं उण नै !
मदारी अबै कठै रैया
बै तो छिपग्या है
बगत री बीं सिन्झया रै साथै
जठै सूरज दूसङर नीं उगै।
रोजी रोटी रै जुगाड़ मांय पज्या
मदारी अबार मजूर बणग्या है
बारै हाथां रा जादू तो
टी.वी. विडियोगेम अर वीसीडी हेठै दबग्या है
अर मदारी आला खेल
राजनीति मांय घुसग्या है
अब रजधानी मांय बाजै है डुगडुगी
नाचै है बांदरा
बदल-बदल मुखौटा सांतरा।

दंगा
साम्प्रादियक दंगा
चार मर्या छः घायल...
साव कूड़।
दंगा नीं हुवै साम्प्रदायिक कदैङई
हां हुवै है करावणियां।
धरम रै खीरां स्यूं
बास्तै सिलगा
आपरौ रोट सिकावणियां।
दंगौ नीं भड़कै कदैङई
हिन्दू-मींयैं रै झगड़ै स्यूं।
ओ तो सिलगायौ जावै
जद धरम रूखाला
सुख चैन
अर सांयती स्यूं धाप जावै।
पाग
अब पाग कोनी दीसै !
पाग कींयां दीसै
पाग तांईं
सिर चाइजै
पलकतौ माथौ चाइजै
अर मिनखपणौ चाइजै
जिकौ उणङनै
साम्है अनै उंचायां राखै।
माथा अर मिनखपणौ
कठै रैया अबार !
अब री घड़ी
खाली घड़ां है
जिकी पड़नै अनै आखड़नै डैर स्यूं
घड़ लिया है
फगत
दरसाव देखता
बदलीजण आला मुखौटा !
जिकां नै बगत सारू ओपावै
सरकस रै जोकर दांई !
पाग तांई कालजौ चाइजै !
पण कालजा कठै है
जका दकालै
क्ांडां री रोङई मांय
दाकलतै सिंघ नै।
पाग तांई
चाइजै मूंछ
पण अब तो हालै पूंछ।
मूंछ रो ेक बाल
अडाणै मेल्यां
आडै बगत मांय
बंचै आण
पण मूंछ कठै दीसै अबाङर
बाइ-गट्टां री बातां करतां
मुण्ड़ा माथै।
पछै पाग किण रै ताण टिकै
माथौ, मूंछ अर
कालजै ज्यूं
लुक नीं सकी बा
बापड़ी साफौ बणी टुकड़ां मांय बिकै।

धरम-करम
मिन्दर री जिग्यां
होंवती एक मस्जिद
का पछै मस्जिद तोड़ङर
चिणीज्यो हो देवरौ।
कुण जाणै ?
किण नै ठाह ?
पण हाल तांईं चिणीजै
मिन्दर मस्जिद री भींता मांय
जींवता मिनख
बलि रा बकरा बण्योड़ा।
थेङई कैङवौ
बताऔ थेङई
कसाई स्यूं घाट कठै
ऐ देवरा
ऐ मस्जिद !

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